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विकास अग्रवाल
विवेक अग्निहोत्री अच्छी फिल्में बनाते है। हम आम लोग जिन्हें स्क्रिप्ट, स्क्रीनप्ले, एंगिल का नहीं पता, हीरो को प्रोटेगोनिस्ट और विलेन को एंटागोनिस्ट नहीं कहते, कंक्रीट एस्थेटिक ऑफ फिल्म नहीं पता उनके लिए अच्छी फिल्म का पैमाना यह है जिसे हिंदुस्तान की सारी प्राइवेट कायनात बैन कराने पर लग जाए।
कम से कम स्वरा भास्कर और रवीश कुमार जी तो नकार ही दें फिल्म को। सेंसर बोर्ड कम से कम चार कट लगा दे, नाम बदल दे, फिल्म की आत्मा को मारने की कोशिश करे, मुहाँसे वाली बाई एक गाना बनाएं कि ई सनीमा में का बा. वो फिल्म हमारे लिए अच्छी होती है।
द कश्मीर फाइल्स लेकर आए हैं विवेक अग्निहोत्री । इसकी सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें सेंसर बोर्ड ने सात कट लगाए हैं। उन्हें लगा होगा कि ये चीजें सामने आएंगी तो माहौल खराब होगा। मैं चाहूँगा कि सेंसर बोर्ड के इन साहेबान को केरल और पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाकर राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए। वहां की हिंसा की घटनाओं में एकदम से कमी आ जाएगी. साहब को पसंद नहीं है न।
सुना प्रोड्यूसर ने कपिल शर्मा से सम्पर्क किया था अपनी फिल्म के प्रचार के लिए। शरमा जी ने मना कर दिया. क्योंकि शरमा जी दिल से चाहते थे कि यह फिल्म हिट हो जाए। कपिल के शो में प्रचार के लिए जाने वाली नब्बे पर्सेंट फिल्में फ्लॉप हो जाती हैं। हो सकता है इसमें कपिल शर्मा की कोई गलती न हो, क्योंकि नब्बे परसेंट फिल्में वैसे ही फ्लॉप हो जाती हैं।
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मगर सवाल यह है कि विवेक अग्निहोत्री ने कपिल शर्मा से सम्पर्क क्यों किया. वो हिंदी बेल्ट के पचास पत्रकारों को पचास पचास हजार देकर बाइस में बाइसकिल गवा लेते।
हो सकता है कि वो कपिल शर्मा के शो में काम करने वालों को सचमुच का किन्नर समझ लिए हों और उनका आशीर्वाद लेना चाहते हों। शायद उन्हें पता नहीं है कि ये लोग किन्नर नहीं हैं, अच्छे खासे लंपट पुरुष हैं जो किन्नर होने की एक्टिंग करके पैसे कमाते हैं। रेलवे पुलिस ने एक बार ऐसे नकली किन्नरों की बहुत पिटाई की थी।
महेश भटक या विशाल भारनवाज यह फिल्म बनाते तो दिखाते कि कश्मीरी पंडितों का पूरा परिवार अपने लकड़ी के कारखाने में काम करने वाले परिवार की महिलाओं का यौन शोषण करता था। उनसे टैक्स लिया करता था। एक टिक्कू नाम की टीचर थी जो इन मजलूम महिलाओं का गर्भपात करा देती थी। बिट्टा कराटे नाम का एक लड़का जो गर्भपात से बच गया उसने बड़ा होकर बदला लिया और इन सब शैतान के पुजारियों को मारकर आजाद कश्मीर से भगा दिया और कश्मीरियत को बचा लिया।
महेश भटक ने कश्मीर में आर्मी के अत्याचार पर भी एक फिल्म बनाई थी और मजे की बात यह है कि इसमें आदरणीय अनुपम खेर ने ऐसे ही अत्याचारित बुजुर्ग की भूमिका की थी, जिनकी पोती का रेप आर्मी अफसर करते हैं इसलिए उनको लेकर इमोशनल होने की जरूरत नहीं है। अनुपम खेर प्रोफेशनल कलाकार हैं इसलिए कश्मीर फाइल्स को उसकी मेरिट पर ही देखें ।