- कौशल सिखौला
पीएम बनने का ख्वाब दिन में देख रहे नीतीश कुमार के दिन क्या वास्तव में लद गए हैं ? क्या लालू और तेजस्वी के सब्र का पैमाना अब छलक उठा है? जीतनराम मांझी के इस कहे में कितना दम है कि जो लोग भावी मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं वे नीतीश कुमार को खाने में स्लो प्वायजन दे रहे हैं ? नीतीश कुमार का माथा कुछ घूम गया है या उन्हें भूलने की बीमारी डायमेंशिया हो गई है ?
नीतीश ने डॉट इंडिया का अखाड़ा जोड़ा। क्या इंडिया गठबंधन अभी भी उन्हें संयोजक बनाने को तैयार होगा ? जिन्हें जुबान पर नियंत्रण नहीं रहा वे नीतीश क्या पीएम फेस बन पाएंगे ? क्या नीतीश की पारी का अंत हो चुका है ? क्या प्रशांत कुमार का यह कहना सही है कि बिहार में नीतीश को अपना खाता खोलने के भी लाले पड़ जाएंगे ?
ये यक्ष प्रश्न हैं , जिनका उत्तर इन दिनों राजनीति में तलाशा जा रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि राजनीति में नीतीश का कद काफी ऊंचा रहा है। उनका राजनीतिक वजन भी कम नहीं। अनेक बार सीएम और केंद्रीय मंत्री रहे नीतीश के सीने पर सुशासन बाबू का तमगा लंबे समय तक लटकता रहा। लेकिन अब भाजपा का साथ छोड़ने की छपछपाहट उनका पीछा नहीं छोड़ रही।
साथ ही उन्हें गठबंधन का संयोजक न बनाकर लालू और कांग्रेस ने उनसे छल किया। अब शातिर लालू उन्हें चलता करने की फिराक में हैं। परिणाम स्वरूप अकेले पड़ गए नीतीश उखड़ गए हैं। विधानसभा में उन्होंने जिस अश्लील भाषा का इस्तेमाल किया , वह निम्नपन की पराकाष्ठा था। तीन दिनों से उनके खिलाफ आक्रोश है जिस कारण उनका मानसिक संतुलन और बिगड़ता जा रहा है।
बिहार में जाति जनगणना कराकर नीतीश इतने उछले थे कि खुद ही फिसलकर गिर पड़े। विधानसभा में बेवजह बैडरूम का हाल सुनाकर सब गुड गोबर कर दिया। एक बात तो साफ हो गई कि उन्हें गठबंधन संयोजक या पीएम फेस बनाने के लिए इंडिया डॉट में कोई तैयार नहीं होगा। उल्टे गठबंधन का कबाड़ा हो सकता है। अखिलेश , केजरीवाल और ममता का पहले ही इंडी संगठन से मोह भंग हो चुका है। अब तक नीतीश से खुद डॉट इंडिया का मोहभंग हो गया होगा। तो फिर देख लीजिए नितिशे बाबू कहीं आपने ही तो राहुल गांधी को पीएम फेस के लिए प्रोजेक्ट नहीं कर दिया ?