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राज शेखर तिवारी
“केवल बात समझाने के लिए उपमा दिया है, तुलना नहीं कर रहा हूँ “ बुद्ध कहते हैं… “संसार में दुख है अत: संसार छोड़ो”
पर सनातन हिन्दू धर्म का भक्ति और वेदांत मत इससे सहमत नहीं है।
अब बॉलीवुड पर आते हैं….
अपने हृदय से पूछिए… आप में से कितने लोग दस वर्ष पूर्व तक बॉलीवुड में अधिकांश अभिनेता और अभिनेत्रियों में दीवानापन रखते थे । आज भी कुछ रखते होंगे पर अधिकांश का मोह आज भंग हो गया है।
अब जिसका मोह भंग हो गया है उसे बॉलीवुड एक दुख का कारण दिखेगा और यदि हम से कोई बौद्ध कहे कि बॉलीवुड को दुख मानकर छोड़ दो तो वह छोड़ देगा।
‘तानाशाह’ महात्मा गांधी और ‘लोकतांत्रिक’ नेता जी सुभाष चंद्र बोस
‘तानाशाह’ महात्मा गांधी और ‘लोकतांत्रिक’ नेता जी सुभाष चंद्र बोस
पर वेदांत मत के अनुसार, दुख में वैराग्य तो स्वाभाविक है। उसको छोड़ने में कौन सा तप है ? तप तो तब है जब आप ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु में सुख देखें ही नहीं और वैराग्य करें।
ईश्वर को अपनी बुद्धि का विषय बनाइए,,दो कौड़ी के सिने कलाकारों को अपना आदर्श नहीं। आदर्श राम और कृष्ण में है। आदर्श सीता और द्रौपदी या विदुला में है।
जिस पल आपके आदर्श श्री भगवान होंगे, तय मान लीजिए कि आपके जीवन की दशा और दिशा बदल जाएगी। बुद्धि को केवल तर्क में डालेंगे तो वह शून्यता की ओर ले जाएगी और मिलेगा कुछ नहीं । बुद्धि को बॉलीवुड में लगाएँगे तो क्षणिक सुख और बाक़ी केवल दुख ही मिलेगा।