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मनीष शर्मा
चुनाव आयोग ने वोटर्स के नियमों में बदलाव किया है। अब कोई भी “Non-local” वहाँ के चुनावों में वोट डाल सकता है। अगर आप जम्मू कश्मीर में 6 महीने से ज्यादा समय से रह र हे हैं, तो आप वहाँ की वोटर लिस्ट में नाम जुड़वा कर वोट डाल सकते हैं। पहले इस काम के लिए आपको डोमिसाइल सर्टिफिकेट चाहिए होता था।
दरअसल यह कोई नया नियम नहीं है….. पूरे देश में यही नियम पहले से ही है, अब ये जम्मू कश्मीर में भी लागू कर दिया गया है।
उदाहरण के लिए, मैं जयपुर का रहने वाला हूँ। लेकिन कई सालों से गुड़गाँव और नोएडा में रह रहा हूँ…. मैंने दोनों जगह बिना डोमिसाइल सर्टिफिकेट के ही अपना नाम वोटर लिस्ट में जुड़वाया और आराम से वोट भी दे रहा हूँ। अब जम्मू कश्मीर में रहने वालों को भी यही सुविधा मिलेगी। जो 370 और 35A के समय मिलनी असंभव थी।
इस ख़बर से दो तरह के लोग परेशान हैं।
एक तो जम्मू कश्मीर की लोकल पार्टियां परेशान हैं। उनके हिसाब से यह फासिस्ट है। डेमोक्रेसी का अंत है। क्योंकि उन्हें अपना अच्छा खासा नुकसान होता दिख रहा है। 25 लाख से ज्यादा नये वोटर होंगे, जो अधिकांश इन पार्टियों के खिलाफ ही वोट करेंगे… इसलिए दर्द होना ही है।
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दूसरे लोग हैं कट्टर झटटर टाइप्स जिनमें एक तोतला पत्रकार है, दूसरा राजस्थान क्रिकेटर बोर्ड में घपला करने वाला IAS। यह लोग हल्ला मचाएंगे कि देखो मोदी अब रोहिंग्यो को भी वोट करने का अधिकार दे दिया है। जबकि रोहिंग्यो को वोट करने का अधिकार नहीं है।
हाँ, पाकिस्तान से आये हिन्दू सिख विस्थापतों, दशको से कश्मीर में काम कर रहे एससी/एसटी जाति के लोग, हमारी सेना के लोग, वो लाखों लोग जो कुछ महीनों या सालों के लिए कश्मीर में रह रहे हैं। सेना और पैरामिलिट्री के रिटायर्ड जवान और अफसर जो जम्मू कश्मीर के अलग अलग इलाकों में रह रहे हैं। इन सब को वोटिंग के अधिकार मिल जाएंगे।
इस कदम के दूरगामी फायदे होने जा रहे हैं। बाकी जो विरोध कर रहे हैं, वो सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। कोई हरा मुखौटा लगाए है कोई भगवा।