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तुषार झा
कोरोना वायरस संकट के बीच उत्तर प्रदेश में जाती की राजनीति के नए नए अध्याय खोले जा रहे हैं। विकास दुबे एनकाउंटर के बाद कहा जा रहा था कि ब्राह्मण वर्ग नाराज़ हो गया है। ऐसे में राजनीति कदल ब्राह्मण दल को लुभाने में लग गया है। समाजवादी पार्टी के मुख्या अखिलेश यादव ने प्रदेश के हर जिले में भगवान परशुराम की मूर्ति लगाने का ऐलान किया है। जो अब बीएसपी प्रमुख मायावती ने भी ब्राह्मण कार्ड के खेल लिया है।
मायावती ने कहा कि प्रदेश में बीएसपी की सरकार बनी तो ब्राह्मण समाज की आस्था के प्रतीक परशुराम और सभी धर्म व जाती में जन्मे महान लोगो के नाम पर अस्पताल और रहने सुविधा युक्त ठहरने का इंतजाम किया जाएगा। मायावती ने समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री होते हुए ही उन्हें परशुराम जी की मूर्ति लगवा लेनी चाहिए थी लेकिन समाजवादी पार्टी चुनाव में वोटों के खातिर यह बात कह रही है जिससे पता चलता है कि सपा की हालत देश में कितनी खराब है।
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मायावती ने कहा कि हमारी सरकार हर समाज जाती धर्म के संतों महापुरुषों को सम्मान देती है। उत्तर प्रदेश में 4 बार बनी बी.एस.पी. के सरकार ने महान संतो के नाम पर कई जनहित योजना सुरु की थी और जिलों की नाम रखी थी उसकी बाद आई सपा सरकार ने जातीवाद की मानसिकता और द्वेष की भावना के कारण बदल दिया था।
बी.एस.पी. की सरकार बनते ही ये फिर से बाहर किया जाएगा। उन्होंने कहा कि बी.एस.पी. किसी भी मामले में सपा की तरह कहती नहीं है बल्कि कर के भी दिखाती है, बी.एस.पी की सरकार बनने पर स.पा. की तुलना में परशुराम जी की भव्य मूर्ति लगाई जाएगी।
बी.एस.पी सुप्रीमो ने भाजपा पे भी निशाना साधा, मायावती ने कहा कि 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर का शिलान्यास किया, अच्छा होता यदि पी.एम उस दिन दलित समाज से जुड़े राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को साथ लेकर अयोध्या आते। वहीं कुछ दलित संत भी चिल्लाते रहे कि उन्हें नही बुलाया गया। दलित संतो को बुलाया लेकिन राष्ट्रपति को बुला लेते तो अच्छा संदेश होता होने वाले चुनाव के लिए है। अब यह देखना बाकी है कि परशुराम जी किस की नय्या पार लगाते हैं।