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प्रमोद शुक्ल
संविधान में पहले यह व्यवस्था थी कि वैचारिक दूरी बढ़ने पर किसी भी सदन में किसी भी पार्टी के एक तिहाई विधायक या सांसद यदि अलग गुट बनाना चाहें तो वह बना सकते थे। बाद में इस कानून को बदल दिया गया। एक तिहाई की जगह यह संख्या अब दो तिहाई होनी चाहिए, तभी कोई गुट अलग अपना दल बना सकता है, अन्यथा उनकी सदस्यता रद्द हो जाएगी।
यह कानून बनने के बाद पार्टियों का टूटना लगभग बंद हो गया, मुझे याद नहीं कि कब कौन सी पार्टी के दो तिहाई विधायक या सांसद अलग होकर अलग गुट बना पाए। परंतु यह कानून आने से लोकतंत्र का बहुत बड़ा नुकसान हो गया।
मोदी सरकार के खिलाफ लेफ्ट-लिबरल ईकोसिस्टम की सुनियोजित साजिश
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शिव सेना नेतृत्व से दूरी बनाए गुट के नेता एकनाथ शिंदे ने कहा है कि मुख्यमंत्री बनने के लिए वो यह सब नहीं कर रहे हैं। शिंदे ने अपने हाईकमान और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से कहा कि शिवसेना यदि भाजपा के साथ गठबंधन कर ले तो पार्टी नहीं टूटेगी।
उन्होंने कहा कि हम हिन्दुत्व की राजनीति करते रहे हैं, इस वजह से कांग्रेस और एनसीपी हमारे गले नहीं उतर पा रही है। मीडिया की खबरों के मुताबिक, बताया जा रहा है कि 55 में से 30 शिवसेना विधायक इस समय शिंदे को अपना नेता मानते हुए उन के साथ हैं।
लगभग सभी पार्टियों का नेतृत्व पूरी तरह से तानाशाह होता चला गया और राजनीतिक पार्टियां प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रूप में परिवर्तित होती चलीं गईं।
एकनाथ शिंदे यदि शिवसेना के दो तिहाई विधायक जुटाने और कानूनी रूप से यह संख्या साबित कर पाने में सफल होते हैं तो पक्का जानिए कि महाराष्ट्र के वह बहुत बड़े नेता के रूप में स्थापित होने जा रहे हैं।