- मृदुल त्यागी
हाल के चुनाव नतीजों में जो कांग्रेस-भाजपा ढूंढना चाहें ढूंढें, हमारे लिए ये चुनाव भाजपा बनाम भाजपा था। एक तरफ मोदी जी वाली भाजपा कर्नाटक में चुनाव लड़ रही थी। जिसमें टोपी, दाढ़ी सब थी। सबका विश्वास, पसमांदा और न जाने क्या-क्या था। विकास, जन-धन, सड़कें, पुल, एक्सप्रेस वे, सबको राशन, उज्ज्वला सिलेंडर, सबको छत, सब नलों में पानी जैसी बातें याद दिलाई जा रही थीं।
दूसरी तरफ योगी जी वाली भाजपा उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव लड़ रही थी। इसमें हर काम करते हुए, सड़कें बनाने के बावजूद, विकास करने के बावजूद, रिकॉर्ड इनवेस्टमेंट लाने के बावजूद, इंडस्ट्री लगवाने के बावजूद, रोजगार देने के बावजूद न तो सीएम ने और न ही बाकी संगठन ने इस नाम पर चुनाव लड़ा।
कर्नाटक में वोट मांगा गया, डबल इंजन सरकार के नाम पर। यूपी में वोट मांगा गया माफिया का इंजन ध्वस्त करने के नाम पर। माफिया का मतलब आप समझ रहे हैं न, माफिया सिर्फ अतीक नहीं था, माफिया हैं दंगा करने वाले, फतवे देने वाले, लव जिहाद वाले, पत्थरबाज, सर तन से जुदा गैंग, सीएए, किसान आंदोलन, पहलवान आंदोलन के नाम पर अशांति फैलाने वाले।
मतदाता सूचियों में गड़बड़ी मानवीय भूल के कारण नहीं…
बात कर्नाटक में भी आखिर में बजरंग बली की हुई, केरल स्टोरी के नाम पर लव जिहाद की भी हुई। लेकिन वो फोर्स नहीं था, जो योगी जी की बात में यूपी की जनता महसूस कर रही है। कर्नाटक और यूपी में अंतर ये था कि कर्नाटक की तरह यूपी में किसी ने टोपी वाले को योगी जी के कान में खुसर-फुसर करते नहीं देखा।
मोदी जी के योगदान पर कोई सवाल नहीं है। उन्होंने जो कर दिया, वो नये भारत, हमारे भारत की वो तस्वीर है, जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी।
लेकिन देश की राजनीति चुनाव से निकलती है। चुनाव में एक तरफ वकील हैं, जज हैं, लिबरल हैं, वामपंथी हैं, जिहादी हैं, चर्च हैं, नक्सली हैं। जिन्हें किसी की सरकार से कोई फर्क नहीं पड़ता। दूसरी तरफ आजादी के अमृत काल में आजाद भारत में अपनी बेटी के सड़क पर निकलने की आजादी, अपने घर को किसी जिहादी के हाथ न बेचने की इच्छा, कारोबार करने, जीने के अधिकार के लिए तरसते सनातनी हैं। ये वे लोग हैं, जो अपने अधिकार के लिए पत्थर नहीं मारते। लेकिन वे पत्थर मारने की कलाई पकड़ने वाली भाजपा को देखना चाहते हैं।
अब आगे का रास्ता भाजपा को तय करना होगा। सड़क, बिजली पानी, इनवेस्टमेंट, सबका साथ-सबका विकास की राह पर चलना है। या फिर सबका विकास, लेकिन तुष्टिकरण नहीं। पसमांदा के नाम पर वोट ढूंढने की कोशिश करने वाली भाजपा या फिर देश विरोधी पत्थरबाज को सबक सिखाने वाली भाजपा।