-
डॉ प्रदीप भटनागर
लोकसभा के पिछले आम चुनाव 2019 में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू ने विपक्षी एकता की जबरदस्त कोशिशें की थी. प्रधानमंत्री मंत्री बनने की आंतरिक इच्छा के बावजूद वे कहते थे कि कोई प्रधानमंत्री बन जाए, लेकिन मोदी को हराना देश बचाने के लिए जरूरी है।
भाजपा के पूर्व सहयोगी चंद्र बाबू नायडू अपने इस महान मिशन के लिए दो साल तक आंध्र प्रदेश में कम और विपक्ष शासित राज्यों में ज्यादा घूमते रहे। परिणामस्वरूप चंद्र बाबू नायडू राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता का बड़ा चेहरा बन गए, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों का जब परिणाम सामने आया तो मोदी पिछली बार से ज्यादा सीटें जीतकर प्रधानमंत्री की दोबारा पारी खेलने लगे और चंद्र बाबू नायडू परिदृश्य से गायब हो गए। विपक्षी एकता के लिए कोई आज उनको याद भी नहीं कर रहा। जनता को तो छोड़िए, विपक्षी नेताओं को भी याद नहीं कि नायडू कहां हैं?
जो लोग देश की सफलता पर खुश नहीं होते
लोकसभा के अगले चुनाव यानी 2024 के लिए विपक्षी एकता का वही मिशन इन दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चला रहे हैं। विपक्षी एकता का मिशन चलाने वाले चंद्र बाबू नायडू और नीतीश कुमार में काफी समानताएं भी है। नीतीश कुमार भी भाजपा के पूर्व सहयोगी रहे हैं और मोदी को हराकर देश को बचाना चाहते हैं। मुख्यमंत्री होते हुए भी दोनों प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहते नीतीश कुमार भी देश बचाने के लिए बिहार छोड़कर विपक्षी नेताओं के दरवाजे दरवाजे भटक रहे हैं।
अब इस राजनीति को तो मोदी, अमित शाह और राहुल गांधी, शरद पवार, ममता बनर्जी जैसे पक्ष विपक्ष के नेता समझें, लेकिन जनता इस बात को लेकर जरूर विचार करने लगी है कि लोकसभा चुनाव के बाद नायडू की तरह नीतीश भी खामोशी से घर बैठ गए तो देश का क्या होगा? देश के लिए जरूरी विपक्षी एकता का क्या होगा? नीतीश कुमार वैसे भी बिहार विधानसभा के बीते चुनाव में लगभग हर मंच से यह घोषणा कर चुके हैं कि वे आगे कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे।