- देवेन्द्र सिकरवार
दक्षिण में हिन्दुओं का प्रतिकार ! मैंने हमेशा कहा है कि उत्तर में हिन्दुत्व सड़ गया है जिसका मूल कारण हैं नालायक जातिवादी चरबीगोले शंकराचार्य, उनके जातिवादी चेले और कांग्रेस द्वारा खड़ा किया गया लिबरल्स का इकोसिस्टम।
लेकिन दक्षिण के शंकराचार्य, संत, ब्राह्मण तमाम सरकारी उत्पीड़नों के उपरांत भी अभी तक अपनी परंपराओं पर कायम है जिसके कारण वहाँ के हिंदुओं ने आक्रामक रूप धारते हुये प्रहार करना शुरू कर दिया है।
चेन्नई स्थित द हिंदू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एंपावरमेंट (HR&CE) ने अपने कॉलेज में विभिन्न पदों के लिए ‘केवल हिंदुओं’ (Only Hindu) को आमंत्रित किया है। यह विज्ञापन 13 अक्टूबर को कोलाथुर में अरुलमिगु कपालेश्वर आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज के लिए कई टीचिंग एंड नॉन टीचिंग पदों के लिए विभिन्न प्रकाशनों में दिखाई दिया, उसमें कहा गया है कि पद ‘केवल हिंदुओं के लिए’ है।
प्रभुता का अर्थ सही मायने में
दक्षिण में हिन्दुओं का प्रतिकार : जाहिर सी बात है मु स्लिम, क्रि श्चियन्स और उनकी नाजायज बौद्धिक संतानों को बड़ी तेज मिर्ची लगी है लेकिन जब तमिलनाडु के एक गांव में ‘हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है’ जैसे होर्डिंग, मुस्लिम स्वामित्व की कई कंपनियों में ‘केवल मुस्लिमों के लिये’ जैसे विज्ञापन निकले तब ये मुँह में दही जमाये बैठे थे।
उत्तर भारत के कारपोरेट, व्यापारी गण और उपभोक्ता अगर चाहें तो इनका अनुकरण कर सिर्फ सात दिन में खालिस्तानी कुकुरों से लेकर इ स्लामिक आतंकवादियों को घुटनों पर ला सकते हैं लेकिन उत्तरभारत में यह वर्ग पूर्णतः धनपशु हो चुका है और हिंदू कंपनियों द्वारा गैर हिंदुओं को नौकरी में प्राथमिकता देने के कई घिनौने उदाहरण मैंने स्वयं देखे हैं।
यही अंतर है उत्तर व दक्षिण भारत के हिंदुओं में। भविष्य में हिंदुओं का धार्मिक नेतृत्व दक्षिण के संतों व शंकराचार्यों द्वारा और सैन्य नेतृत्व तेलगु हिंदुओं द्वारा किया जाएगा।
विजयनगर साम्राज्य के जन्म की गाथा दोहराई जाएगी। साधु, तमिल हिंदुओ साधु!