मैं हिन्दू हूँ

मैं हिन्दू हूँ किन्तु अब गुरूद्वारे जाने में लगेगा डर !

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  • नीरज कुमार

मैं हिन्दू हूँ और गुरुद्वारे भी जाता हूँ लेकिन क्या हो अगर मैं अगली बार गुरद्वारे जाऊं और सिर पर रुमाल रखना भूल जाऊं या जुराबें उतारना भूल जाऊं…तो ‘बेअदबी के जुर्म’ में क्या मेरा भी वही हश्र होगा जो कल सिंधु बॉर्डर पर लखबीर सिंह का हुआ ?

अगर गरुद्वारे के अंदर मेरी जेब मे लाइटर या माचिस मिल जाये तो क्या यही समझा जाएगा कि मैं गुरु ग्रंथ साहिब को जलाने आया था? गुरुद्वारे जाने के लिए क्या अब इन सब बातों का ध्यान रखना पड़ेगा क्योंकि गरुद्वारों में कोई है जो हमारा लखबीर वाला हश्र करने के लिए तैयार बैठे हैं। यह डर मेरे जैसे न जाने कितने गैर सिक्खों के मन मे कल की घटना के बाद बैठ गया होगा… क्या यही डर पैदा करने के लिए सिख समाज ने निहंग स्वरूप की स्थापना की गई थी??

मन मे बार बार प्रश्न उठ रहा है कि मात्र एक किताब का अपमान करने के इल्जाम में कोई किसी मानव की हत्या आखिर कैसे कर सकता है? निहंगों की वीभत्स हिंसा और बर्बरता ने पूरे देश को रुला दिया है। कोई ऐसा नहीं है जो खबर पढने के बाद आह न भर दे। कोई इतना अमानवीय कैसे हो सकता है मैं पूछता हूं संसार में कौन सी ऐसी किताब है जिसको अस्वीकार कर देने पर किसी को इतनी वीभत्स मौत मारा जा सकता है?

नहीं। कोई ऐसी किताब नहीं जिसकी कीमत किसी व्यक्ति का जीवन हो। धार्मिक किताबें भी मनुष्यों द्वारा ही निर्मित हैं। हां वो मानव हम सामान्य जनों से ऊपर के लोग थे। सिद्ध थे। संत थे। महात्मा थे। उनका पद और मान हमेशा सामान्य मनुष्य से ऊपर रहेगा। लेकिन इसके साथ ही सत्य ये भी है कि इन महापुरुषों की वाणी को कोई मनुष्य मान सकता है, कोई नहीं भी मान सकता है। जो न माने वह अपमान भी कर दे तो क्या फर्क पड़ता है? कर दे तो कर दे। ये उसकी सोच है। उसकी चेतना का स्तर है लेकिन इसके लिए उसकी जान तो नहीं ली जा सकती।


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क्या हमारे प्यारे बाबा नानक ने ये सोचकर अपना वाणी बोली होगी कि अगर किसी दिन उनकी बात को कोई न मानें तो उसकी हत्या कर दी जानी चाहिए? कि गुरु रामदास ने अपने वचन और अरदास ये सोचकर किये होंगे कि अगर कोई उनके वचन की बेअदबी करे तो उसकी हत्या हो जानी चाहिए?

सिख जिसे गुरुग्रंथ साहब कहते हैं, अपना गुरु मानते हैं उसमें तो हिंसा और घृणा है ही नहीं। फिर उसके रखवालों के मन में इतनी घृणा और हिंसा कहां से आ गयी? क्या ये लोग सचमुच सिख धर्म को ही मानते हैं या सिक्ख धर्म के नाम पर इन्होंने कोई अपना मजहब गढ लिया है?

जो भी हो। निहंगों से ऐसी उम्मीद न थी। नागा और निहंग भारत में धर्म की रक्षा करने के लिए बने हैं। लेकिन सिन्धु बार्डर पर कल निहंगों ने जो नंगई की है उसे देखकर आज बाबा नानक की रूह जरूर रो रही होगी। आखिर कैसे लोग मेरे वचनों की रक्षा कर रहे हैं। अगर इनके मन में इतनी घृणा और हिंसा बची हुई है तो फिर मेरे वचनों की रक्षा आखिर क्यों कर रहे हैं? मैं हिन्दू हूँ किन्तु अब गुरूद्वारे जाने में लगेगा डर !

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