पितृपक्ष 2022 : आइए पितरों ! स्वीकारिए श्रद्धा और अन्नजल ! शास्त्रों में बारह प्रकार के श्राद्ध सूर्य की रश्मियों पर सवार होकर आए पितृगण , दक्षिण दिशा में बसा है पितरों का महालय लोक।
आज 10 सितंबर से पितृलोक से धरती वासियों के पितरों का आगमन हो रहा है । सवेरे सूर्य की किरणों पर सवार होकर पितृ सोलह दिनों के लिए धराधाम पर आ पहुंचे । पुत्रों के हाथों से श्रद्धयाग हव्य ग्रहण कर उनकी वापसी पित्रर्विसर्जनी अमावस्या पर होगी । लौटते पितरों की यात्रा अस्त होते सूर्य की रश्मियों के माध्यम से होगी।
आज से प्रारम्भ हो रहे श्राद्धों को पार्वण श्राद्ध कहा गया है । यमस्मृति, गरुड़ पुराण और भविष्य पुराण में 12 प्रकार के श्राद्धों का वर्णन है । ये हैं नित्यश्राद्ध, नैमित्तिक, काम्य श्राद्ध, नान्दीमुख, पार्वण, सपिंडी, गोष्ठी श्राद्ध, शुद्धार्थ, करमांग, दैविक, यात्यार्थ और पुष्ट्पर्य श्राद्ध । इन सभी श्राद्धों का महत्व और इन्हें करने का समय अलग है। अश्विन कृष्ण पक्ष में होने वाले श्राद्धों को महालय पार्वण श्राद्ध कहा जाता है।
सोलह दिनों तक पितृगण अपनी अपनी तिथियों पर पुत्र पौत्र के घर पहुंचते हैं। अमुक पितृतिथि के दिन पुत्र मध्यान्ह काल में नाना प्रकार के व्यंजन तैयारकर ब्राह्मण को तृप्त करते हैं। ऐसा करने से पितृ आशीर्वाद देते हुए वापस लौटते हैं । अन्य श्राद्ध कामना, यात्रा, विवाह, पारिवारिक मंगल कार्य आदि के अवसर पर किए जाते हैं । तीर्थ यात्रा के समय सामूहिक श्राद्धों का विधान नदियों के तटों पर बताया गया है।
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दोपहर के समय पितृ श्राद्ध करते हुए ब्राह्मण भोजन से पूर्व कव्वे, गाय और श्वान का हिस्सा भी निकाला जाता है । शास्त्रों के अनुसार परिवार का दायित्व है कि निराहार रहकर ब्रह्मभोज करे और बाद में पूरा परिवार घर में पकाया गया भोजन ग्रहण करें। इसे श्राद्धयज्ञ शेष कहा गया है । पितृ के निमित्त शुद्धि के साथ भोजन पकाना और कराना चाहिए । ब्राह्मण को समुचित दक्षिणा, वस्त्र, पात्र आदि देकर संतुष्ट करें, तभी पुण्य प्राप्त होगा।
सोलह दिनों का महालय श्राद्धपक्ष अतीत से जुड़ने और पितरों के तर्पण का महापर्व है। यही है मानवजाति के लिए पुरखों के ऋण से उऋण होने का अवसर । आइए पितरों ,,, धरती पर आपका स्वागत । हमारा कल्याण कीजिए ,,, हम आपके ऋणी हैं।