-
नितिन त्रिपाठी
1986 फीफा विश्व कप क्वार्टर फाइनल….अर्जेंटीना बनाम इंग्लैंड। मैच जीरो जीरो पर बराबर था।
हाफ़ टाइम निकल चुका था। अर्जेंटीना के एक अटैक को इंग्लैंड ने डिफ़ेंड किया और गेंद अपने गोली को पास की कैच के लिये… बीच में डिएगो मैराडोना आ गये. हेडर से गेंद इंगलैंड के गोल पोस्ट में।
इंग्लैंड ने प्रोटेस्ट किया कि गोल करने में हाथ लगा है। पर उस समय तक वीडियो रेफ़री टेक्नोलॉजी थी। रेफ़री ने लाइनमैन से बात कर गोल कन्फर्म कर दिया।
मैच के बाद माराडोना से पूँछा गया…तो माराडोना ने स्टेटमेंट दिया कि वह “हैंड ऑफ़ गॉड” था। इतिहास में यह गोल #हैंड_ऑफ़_गॉड नाम से मशहूर हुआ।
बाद में फ़ोटोज़ से क्लीयर हुआ कि वाक़ई माराडोना का हाथ लगा था. पर अब क्या फ़ायदा. अर्जेंटीना वह मैच जीतकर अंत में वर्ल्ड कप भी जीता. यद्यपि इसी मैच में बाद में माराडोना ने एक और गोल किया जो “गोल ऑफ़ दि सेंचुरी” के नाम से बीसवीं सदी का सर्वश्रेष्ठ गोल माना जाता है। पर हम सब उस मैच को इसे “हैंड ऑफ़ गॉड” गोल से ही याद करते हैं।
1986 फीफा विश्व कप क्वार्टर फाइनल….और ‘हैंड ऑफ गॉड’
‘टिबेटन मार्केट’ की आड़ में तिब्बती बौद्ध भिक्षुओं ने भारत में चलाया चीन का एजेंडा
यही है अर्जेंटीना की टीम और उनका स्टाइल। स्वाभाविक ऐग्रेसिवनेस है। उद्दंडता भी है। थोड़ी बेइमानी भी है। बिलकुल पैसनेट होकर दिल से खेलते हैं जीवन मृत्यु का प्रश्न समझकर।
यह फ़ीफ़ा फाइनल दो देश अर्जेंटीना बनाम फ़्रांस नहीं बल्कि दो संस्कृतियों का मुक़ाबला है. ऐग्रेसन बनाम डिफ़ेंस, रस्टिक बनाम सोफ़िस्टिक, दिल बनाम दिमाग़ का मुक़ाबला है।
हम में से ज़्यादातर भारतीय अर्जेंटीना स्टाइल से ख़ुद को ज़्यादा लिंक करते हैं। मेसी भारत में भी सुपर स्टार है. इस रविवार को फ़ैसला होगा..कि क्या मेसी इतिहास में अपना नाम दर्ज कर पायेंगे? हमारी शुभकामनाएँ अर्जेंटीना और मेसी के साथ हैं।