टीवी चैनलों के ज्योतिषियों की प्रमाणिकता

टीवी चैनलों के ज्योतिषियों की प्रमाणिकता समझ लीजिये

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  • प्रमोद शुक्ल

टीवी चैनलों के ज्योतिषियों की प्रमाणिकता : आपने अक्सर टीवी चैनलों पर ऐसे ज्यतिष कार्यक्रम देखे होंगें जिसमें कोई भी लाइव कॉल करके और अपना जन्म-विवरण बताकर अपनी समस्याओं का समाधान पूछता है। ज्योतिषी महाराज सामने रखे लैपटॉप में जन्म-विवरण भरते हैं, कुंडली सामने आती है और वो बताना शुरू कर देते हैं और लगभग एक मिनट में ही उसके बारे में एक-दो बातें बताकर फिर उन समस्याओं का समाधान भी बता देतें हैं. चमत्कृत लोग उनके यशोगान में लग जाते हैं।

यहाँ प्रश्न ये है कि कुंडली देखकर क्या इतनी जल्दी कुछ बताया जा सकता है? मैं कहूँगा कि जितनी अवधि ये ज्योतिष लेतें हैं उसमें जन्म राशि, जन्म-लग्न, मांगलिक है कि नहीं, साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही है कि नहीं, कुंडली में कालसर्प योग है कि नहीं और कौन से ग्रह उच्च के, कौन नीच के और कौन स्वराशि के हैं से अधिक कुछ भी बताना असंभव है। कोई अगर इसके विस्तार में जाना चाहे तो वो भी इस अल्प-अवधि में संभव नहीं है क्योंकि कोई ग्रह किसी राशि मात्र में होने से ही उच्च-नीच या मूल-त्रिकोण का नहीं हो जाता क्योंकि ऐसा होने के लिये उसे डिग्री की शर्त भी पूरी करनी होगी और ऐसा ही मांगलिक के साथ भी है क्योंकि मांगलिक दोष भी कई और दूसरी बातों पर निर्भर करता है।

टीवी चैनलों के ज्योतिषियों की प्रमाणिकता : मान लीजिये मेरे सामने कोई कुंडली आती है और मुझे दस से पन्द्रह मिनट उस पर देना है तो भी उस अवधि में केवल कुछ बातें ही बताई जा सकती और वो भी ठीक-ठीक नहीं।

उदाहरण के लिये किसी की कुंडली में पंचम और सप्तम का आपस में परिवर्तन है या फिर पंचमेश सप्तम में और सप्तमेश पंचम में बैठा है तो हम ये कह सकतें हैं कि जातक की कुंडली में प्रेम-विवाह या फिर जान-पहचान में विवाह होने का योग है पर ये योग भी हर कुंडली में सही ही हो ये आवश्यक नहीं है क्योंकि हो सकता है कुंडली में कुछ ऐसे योग भी हों जो इसे होने देने में बाधक हैं और जिसे उस दस से पन्द्रह मिनट की अल्प-अवधि में देखा जाना संभव नहीं है।

अब प्रश्न है कि किसी की कुंडली देखने के लिये किसी ज्योतिर्विद को कितना समय चाहिये? तो इसका उत्तर है शायद पूरा जीवन और शायद एक से अधिक जन्म क्योंकि ज्योतिष में मुख्य लग्न कुंडली के अलावे कई वर्ग कुण्डलियाँ भी होतीं हैं जैसे पत्नी के लिए नवमांश का, रोजगार के लिये दशमांश का और संतान के लिये सप्तमांश का प्रयोग किया जाता है।


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टीवी चैनलों के ज्योतिषियों की प्रमाणिकता : यानि लग्न कुंडली से रोजगार के बारे में आप जो फलित करेंगें हो सकता है वैसा न हो क्योंकि दशमांश कुछ और दिखा रहा है। ये भी हो सकता है कि किसी प्रबल योग के रहते हुये भी आपको उसका फल न मिले क्योंकि आपकी जिंदगी में वैसी अनुकूल दशा कभी आई ही न हो। मान लीजिये कि आपकी लग्न कुंडली में कोई ग्रह उच्च का है पर वो नवमांश में नीच का हो गया है तो फलित सूत्रों के अनुसार वो ग्रह अपनी उच्च राशि का फलित नहीं करेगा। इसी तरह इसका विपरीत भी है. कोई ग्रह वक्री हो गया तो उसके पूरे फल ही बदल जायेंगें।

शनि की साढ़े-साती और ढैय्या के साथ भी यही है क्योंकि अपने काल में वो अपने नक्षत्र-भ्रमण, लग्न, लग्नेश आदि के साथ अपने संबंधों के आधार पर फलित करेगा।
सबसे बड़ी बात ये है कि किसी भी कुंडली की विवेचना उस जातक की पृष्ठभूमि जाने बिना किया जाना असंभव है क्योंकि अव्वल तो ये दावा ही कोई नहीं कर सकता है कि ज्योतिष के हाथ में जिसकी कुंडली है वो लड़का है कि लड़की है।

परिस्थिति और देश-काल फलित को सबसे अधिक प्रभावित करतें हैं। इसे एक छोटे उदाहरण से समझिये। मान लीजिये किसी के लग्न और लग्नेश पर चन्द्र और शुक्र जैसे ग्रहों के प्रभाव को देखकर आपने कह दिया कि जातिका गौर-वर्ण की है और अगर कि वो कन्या अफ्रीका के किसी देश से हुई तो फिर आपका फलित व्यर्थ हो जायेगा क्योंकि आपने कुंडली की व्याख्या करते हुये देश-काल का ध्यान नहीं रखा।

इतना लिखने का अर्थ ये है कि लगभग चार लाख से अधिक सूत्रों का समायोजन करते हुये, देश-काल और परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए और अलग-अलग दैवज्ञों के मतैक्य के बीच फलित करना आसान नहीं है और न ही मिनटों में किसी की कुंडली का विश्लेष्ण किया जा सकता है।

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