मेडिकल में अपना भविष्य बनाने के लिए छात्र नीट की परीक्षा देते हैं। नीट की परीक्षा की रैंकिंग के हिसाब से ही छात्रों को देशभर के अलग-अलग मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिलता है। पूरे भारत में आयोजित होने वाले नीट की इस परीक्षा के खिलाफ तमिलनाडु विधानसभा में सोमवार को एक विधेयक पारित हुआ था जिसके तहत अब तमिलनाडु में नीट परीक्षा आयोजित नहीं की जाएगी।
तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पास किए गए इस कानून के तहत अब जो भी छात्र तमिलनाडु के मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन लेना चाहते हैं उन्हें NEET एग्जाम से नहीं गुजरना पड़ेगा, उनका एडमिशन 12वीं में आए अंकों के हिसाब से ही हो जाएगा लेकिन यहां पर प्रश्न यह उठता है कि आखिर जब पूरे भारत में एक संविधान, एक कानून के तहत मेडिकल कॉलेजों में नीट परीक्षा का आयोजन कराकर दाखिला दिया जा रहा है तो तमिलनाडु में नीट परीक्षा को लेकर अलग से कानून क्यों बनाया गया?
अगर तमिलनाडु की तर्ज पर दूसरे राज्यों ने भी ऐसा ही कानून पारित कर दिया तो भारत के संघ का मतलब ही क्या होगा। हम सबको पता है कि भारत एक संघात्मक देश है । सभी राज्यों को एक साथ लेकर चलने वाला। तमिलनाडु सरकार को यह भी सोचना होगा कि उनके इस विधेयक से दूसरे राज्यों पर भी असर पड़ेगा और वह चुनावी माहौल को देखते हुए अपने राज्य में भी कुछ ऐसे ही विधेयक पारित करा सकते हैं।
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NEET एग्जाम और विधेयक को लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि “तमिलनाडु में पहली बार नीट का आयोजन तब किया गया जब पलानीस्वामी मुख्यमंत्री थे और यह उस समय भी नहीं किया गया था जब जयललिता मुख्यमंत्री थीं हाल के वर्षों में जिन छात्रों ने भी आत्महत्याएं की वह पलानीस्वामी के मुख्यमंत्री रहते हुई।”
जब पूरे देश के मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए एक ही परीक्षा वह भी नीट आयोजित की जा रही है तो उससे तमिलनाडु अपने आपको क्यों अलग करना चाहता है? ऐसे कई सामने आ रहे हैं, जिनका जवाब तमिलनाडु को सरकार को देना ही चाहिए।