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उमा शंकर सिंह
रूस यूक्रेन युद्ध में रूस की निंदा न करने और रूस से कच्चा तेल व कोयला खरीदते रहने के कारण अमेरिका, ब्रिटेन और योरोपियन देश भारत से झुंझलाए हुए हैं। भारत पर दबाव बनाने के लिए अमेरिका और यूरोपियन यूनियन खास तौर से जर्मनी फिर उसी पुरानी तिकड़म की कूटनीति पर आ गए हैं, जिसके तहत वे पाकिस्तान की पीठ थपथपाते थे।
अभी कुछ दिनों पहले जर्मनी की विदेशमंत्री पाकिस्तान आई थीं। बिलावल भुट्टो के साथ उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि भारत और पाकिस्तान को कश्मीर का मसला UNO के रिजोल्यूशन के अनुसार हल कर लेना चाहिए. वैसे जर्मनी जो पहले पश्चिमी जर्मनी था उस समय से ही भारत से दूरी बनाए रखता था क्योंकि तब भारत को पूर्णतया सोवियत कैम्प में माना जाता था।
जबकि पूर्वी जर्मनी सोवियत संघ के कैम्प में रहते हुए वारसा पैक्ट की संधि में रहते हुए सोवियत संघ के साथ बंधा था। चूंकि जर्मनी योरोपियन यूनियन की सबसे बड़ी एकोनॉमी है इसलिए फ्रांस को उसका लिहाज करना पड़ता है। फ्रांस के साथ भारत के बहुत अच्छे रिश्ते हैं, वह भारत को कोई नुकसान नहीं पहुँचाएगा।
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अमेरिका ने पाकिस्तान के प्रति अपना रुख अचानक तबसे दिखाना शुरू किया है जबसे इमरान खान सत्ता से बेदखल हुआ है। अमेरिका ने ISI के चीफ को वांशिगटन बुलाया और वह वहाँ 13-14 दिन रुका रहा, उसी अवधि में बिलावल भुट्टो फ़ूड सिक्योरिटी कांफ्रेस में भाग लेने के लिए वांशिगटन गया और उससे अमेरिकी विदेश मंत्री ने मुलाकात करके सच्चे सम्बन्ध बनाने की बात कही तब से लगातार 3-4 दिनों बाद अमेरिकी विदेश मन्त्रालय का बयान आता रहता है जिसमें वह पाकिस्तान के साथ पुराने सम्बन्ध की बात दोहराते हुए पाकिस्तान को मदद देने की बात कहते हैं।
जो भी हो, अमेरिका को भारत की जरूरत ज्यादा है क्योंकि उसे हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन को रोकना है। अमेरिका और भारत 2 क्वाड में साथ साथ हैं, लेकिन अमेरिका यदि पाकिस्तान की पीठ थपथपाता रहेगा तो पाकिस्तान फिर अपनी पुरानी घिसी-पिटी आतंक की नीति को जोर शोर से भारत पर आजमायेगा और परेशान करता रहेगा।