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एस ओम प्रकाश
मनुष्य आदिमानव ही है ! बिना किसी को सूचित किये मोबाइल या फोन पर हुई बातचीत की कॉल रेकॉर्डिंग क्या नैतिक और कानूनी रूप से वैध है ? बोलने वाला सोच-समझकर बोले, यह एक अलग विषय है लेकिन चुपचाप कॉल रिकार्ड करना क्या कानूनन जायज है क्या ?
किसी भी ऐप्प(app) में कॉल, गैलरी, फोटो, कॉन्टैक्ट आदि तक पहुँच की अनुमति देना अनिवार्य क्यों हो ? अधिक से अधिक तब के सिवाय जब उस ऐप्प का उपयोग कोई करे और जिस अनुमति की आवश्यकता हो, केवल उसी की अनुमति देने की व्यवस्था करने के लिए ऐप्प कम्पनी को बाध्य क्यों नहीं किया जा सकता है ?
किसी भी समारोह या अवसर पर लिए गये फोटो को बिना फोटो में आये व्यक्तियों की सहमति या अनुमति के सोशल मीडिया पर डाल देना क्यों नहीं अवैध कृत्य घोषित किया जाए ?
मीडिया या किसी व्यक्ति द्वारा किसी को सूचना दिये बिना किसी के निरपराध निजी जीवन या निजी कार्यक्रम का फोटो या वीडियो चुपचाप बनाकर उसे सार्वजनिक कर देना अपराध की श्रेणी में क्यों नहीं रखती सरकार ? सार्वजनिक समारोहों से लेकर खेल के दौरान स्टेडियम में कैमरे द्वारा किसी को टारगेट करना क्या अपराध नहीं है ?
सुखद न्यायिक फैसले….
6.बस, ट्रेन, बाजार, मेला आदि में किसी का फोटो ले लेना फिर कम्प्यूटर से फोटोशॉप द्वारा कुछ का कुछ बना देना एक तेजी से फैलता शगल हो गया है, इसे अविलम्ब जघन्य अपराध घोषित किया जाना चाहिए ?
किसी महिला का सुंदर होना या सुन्दर देहयष्टि का होना अपराध है क्या और तब क्या कोई महिला घर से बाहर निकले ही नहीं ?
मर्यादा का पालन करना हमारे सभ्य-सुसंस्कृत होने की पहचान है चाहे व्यक्तिगत स्तर पर हो या सार्वजनिक स्तर पर लेकिन किसी यंत्र या टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर किसी की निजता को सड़क पर ला देना बहुत ही खतरनाक और भयानक चलन है, जिसे समय रहते रोकना ही होगा।
इसी तरह अपना थोबड़ा दिखाने की लाइलाज बीमारी से ग्रस्त आत्ममुग्ध तनकीट तथा उचित-अनुचित किसी भी तरह से अपना विज्ञापन करने में लिप्त मनोरोगी भी सोशल मीडिया पर अपना कैसा भी फोटो या वीडियो पोस्ट कर सकते हैं क्या ?
सिनेमा जगत में ऐसे मनोरोगी भरे पड़े हैं ! इन गम्भीर विषयों पर गम्भीरता से विचार होना चाहिए। एक लक्ष्मण रेखा खींची जानी चाहिए ??
नहीं तो पाँच साल की निर्दोष और अबोध बच्ची को टीवी के किसी डांस प्रतियोगिता में ‘मुन्नी बदनाम हुई’ और ‘धक धक करने लगा’ जैसे गानों पर बदमाश जज उस नादान बच्ची की कामुक अदाओं को और धारदार बनाने के टिप्स देते रहेंगे और दिमागी रूप से खोखले और इस आयोजन में सबसे अधिक दोषी बच्ची के माता-पिता निर्लज्जतापूर्वक ताली बजाते रहेंगे !!
हम जिसको अपना आदर्श मानते हैं, धीरे-धीरे वैसा ही बनने लग जाते हैं। मूल्यों एवं मर्यादाओं से शून्य मनुष्य आदिमानव ही है !