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संदीप कुशवाहा
इस दुनिया में सबसे अनमोल होता है मित्र और मित्रता का रिश्ता जो व्यक्ति जन्म के बाद स्वयं बनाता है। पृथ्वी पर मानव के रूप में अवतरित होते ही व्यक्ति को बहुत सारे रिश्ते बने बनाए मिल जाते हैं जिनके साथ वह पूरी जीवन रहता है, वह उनसे अलग नहीं हो पाता हालांकि कई बार ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं। (जैसे मां का पिता का भाई का बहन का आदि रिश्ते हमें बने बनाए मिलते हैं। इसमें व्यक्ति की इच्छा ना होने पर यह रिश्ते निभाने पड़ते हैं। )
जब वह इन रिश्तो से अपने आपको अलग करना चाहता है लेकिन भारतीय परंपरा में कोई भी व्यक्ति अपने इन रिश्तो से अलग नहीं हो सकता जब तक वह इस पृथ्वी पर जिंदा है।
जन्म के बाद व्यक्ति बहुत सारे रिश्ते बने बनाए मिलते हैं और उसे उम्र भर निभाना पड़ता है लेकिन मित्रता एक ऐसा रिश्ता होता है। जो हम स्वयं बनाते हैं अपने अनुभव और विचारों के अनुरूप अपनी सोच समझ और अपने मनपसंद विचारों से मेल खाने वाले सामान स्वभाव के व्यक्ति से ही हम यह रिश्ता बनाते हैं।
यह रिश्ता पूरी तरह से ईमानदारी और अपनी स्वयं की इच्छा पर खड़ा होता है इस रिश्ते में कोई समझौता या फिर दबाव नहीं होता यह पृथ्वी पर बनाया हुआ एकमात्र ऐसा रिश्ता है जो ना किसी पर थोपा जाता है ना इसे जबरदस्ती बनाया जाता है यह दुनिया का सबसे अनमोल अनोखा रिश्तो में से एक है।
मित्रता ही ऐसा रिश्ता है जिसमें हम अपनी बहुत सारी बातें एक दूसरे को बताते हैं समझने की कोशिश करते हैं जिन बातों को हम अपने मां बाप के साथ भी साझा नहीं कर पाते। उन बातों को हम अपने मित्र के साथ साझा करें बड़ी आसानी से उसका कई बार समाधान पा लेते हैं। ऐसे में कई बार एक अच्छा मित्र होना जीवन में बहुत आवश्यक होता है।
वह मित्र आपके लिए हर तरह के समस्याओं का समाधान उपलब्ध कराता है मित्रता सच्ची हो तो एक अच्छा मित्र आपका पिता बन सकता है आपका भाई बन सकता है आपको एक मां और बहन के रूप में भी एक अच्छा मार्ग और लोगों का सम्मान करना सिखा सकता है।
पूरा जीवन बिताने के लिए इस अनजान दुनिया में एक हमसफ़र हम साथी की जरूरत होती है वह साथी किसी मित्र से अच्छा कोई नहीं हो सकता क्योंकि मित्रता में कभी भी एक दूसरे को नीचा दिखाने या कुछ पाने या खोने का डर नहीं होता।
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मित्र का रिश्ता कैसा हो
मित्रता सच्ची हो, गहरी हो एक दूसरे के प्रति ईमानदारी वाली, एक दूसरे की आलोचक भी हो, एक दूसरे की चापलूसी वाली ना हो, निराशा में आशा जगाए, बिखर जाने पर उसे संजोए, कर्तव्य पथ के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचाने में मदद करें ऐसी होनी चाहिए मित्रता
मित्रता पर हिंदी के महान कवि ने क्या खूब लिखा है। हिंदी के आलोचक रामचंद्र शुक्ल मित्रों के चुनाव को सचेत कर्म बताते हुए लिखते हैं कि – “हमें ऐसे ही मित्रों की खोज में रहना चाहिए जिनमें हमसे अधिक आत्मबल हो। हमें उनका पल्ला उसी तरह पकड़ना चाहिए जिस तरह सुग्रीव ने राम का पल्ला पकड़ा था। मित्र हों तो प्रतिष्ठित और शुद्ध ह्रदय के हों। मृदुल और पुरुषार्थी हों, शिष्ट और सत्यनिष्ठ हों, जिससे हम अपने को उनके भरोसे पर छोड़ सकें और यह विश्वास कर सके कि उनसे किसी प्रकार का धोखा न होगा।”